मैं किस्मत की धनी हूँ
मैं किस्मत की धनी हूँ
पानी के बुलबुले सी है ज़िंदगी कायनात के
हर ज़र्रे से मैं प्रेम आगोश में भरती हूँ,
दौड़ती हूँ छूने स्वर्णिम रश्मियों के मोह में
चुनती हूँ एक सूरज..!
पर हर बार के साये में लिपटा तमस पाती हूँ,
बूँद गिरती है पलकों की कोर से
तम को देखकर अश्कों की..!
लेकिन लकीरों की धनी बहुत करीब ही
दीये की नर्म रोशनी, मोमबत्ती की किरणें,
ओर चाँदनी से भरी सुराही झिलमिलाती पाती हूँ..!
जगमगाती हर चीज़ को रोशनियों का कुबेर समझ लेती हूँ,
उसे छूने ओर पाने शिद्दत से मचल उठती हूँ..!
अंधेरे के गुब्बार से टिमटिमाते तारों को चुनने की
मेरी व्यर्थ कोशिश में आफ़ताब से रोशन आसमान से भी
कभी तमस का टुकड़ा ओख में उठा लेती हूँ ..!
पर कहा ना किस्मत की धनी हूँ...
अपनों का आरती के दीये सी लौ का
अपनापन आसपास ही पाती हूँ,
ना वो बुलबुला नहीं आत्मज के
अपनेपन का व्योम सराबोर है।