मैं कभी उसका था
मैं कभी उसका था
कभी मुझे वह अपना कहते थे
आज मैं गैर हो गया
एे खुदा तू ही जाने
आखिर वो कैसे इतना मजबूर हो गया
जो कल तक साथ जीने-मरने की कसमें खाते थे
वे किसी सैलाब-सा मेरे आंसुओं में बह गए हैं
एे खुदा जमा कर लेना उन आंसुओं को तुम,
कयामत की रात को आंसुओं का दर्द सुनना तुम
कभी मुझे वह अपना कहते थे,
आज मैं गैर हो गया।
एे मोहब्बत के फरिश्ते खुदा
जब वह तेरे पास आए तो
दिखा देना मेरी पूरी जिंदगी की कमाई
कैसे मैंने उन्हें जिया था
तुम बता देना सारी कहानी उन्हें
जब उन्होंने भरी महफ़िल में
पतझड़ के पौधों सा,
मुझे कर दिया था
बसंत बन गई थी किसी का वह
इश्क का मधुमास हो गई थी वह
तभी मैं कैसे?
उनके मधु का हाला था!
कभी मुझे वह अपना कहते थे,
आज मैं गैर हो गया।