मैं हूँ अनोखी
मैं हूँ अनोखी
दुनिया को देख कर आश्चर्य व उन्माद से भर जाता है मन ,
नया जोश व नयी हसरतें हिलोरियाँ लेने लगती मन में जैसे कोई जल तरंग।
मेरी वो सखी जो एक अद्भुत नित्रयांगना है प्रेरित करती है मन के विचारों को इशारों में कह डालने को ,
तो कुछ लोग ऐसे भी हैं जो गागर में सागर कह डालते हैं और संजो के रखना सिखाते हैं अपनी भावनाओं को।
मेरी वो सखी जो अपनी कलाकृति से पूरी दुनिया के रंग एक कैनवास पर उतार देती है ,
सिखा देती है कि बिना बोले ही तस्वीरें ह्रदय को झकझोर कर रख देने में माहिर होती हैं।
मेरी वो पड़ोसी जो चंचल है इतनी जैसे कोई परिंदा ,
पल -पल मुझे सिखाती है कि बेटा तू रुक मत ,थक मत जब तक है तू ज़िंदा।
इन सभी से प्रेरित हो कर सोचती हूँ कि काश मैं इन्हीं में से किसी के जैसी बन जाऊं ,
पर अगले ही पल ख्याल उमड़ता है दिल में कि क्यों ना सब कि खूबियां बटोर कर भी मैं अपने जैसी ही कहलाऊँ ?
क्योंकि मैं हूँ ईश्वर की अनोखी कृति ,जिसके जैसा दूसरा कोई और नहीं,
बन जाऊं अगर प्रतिबिम्ब किसी का तो वे सब स्वप्न तो अधूरे ही रह जाएँगे जो बड़े अरमान से देखे थे कभी ।
इसलिए क्यों किसी की परछाई बनूँ मैं, क्यों किसी की राह अपनाऊं,
मैं तो हूँ एक स्वतंत्र पंछी ,धरती से उड़ कर क्षण भर में गगन में अदृश्य हो जाऊं।
खूबियां सबकी ग्रहण कर लूँ पर फिर भी अपने जैसी ही कहलाऊँ ,
क्योंकि मैं हूँ अनोखी, अनोखी मेरी शख्सियत खो दिया जो इसे तो जीवन का उद्देश्य ही खो जाऊँ।