मैं ही हूँ
मैं ही हूँ
वैज्ञानिक था बहुत बड़ा थी प्रयोगशाला उससे बड़ी
हरदम करता रहता कुछ नव जो बने हमारे लिए खड़ी
उसने खोजी थी चीजें कुछ ऐसी जिनका पता नहीं
लेकिन इससे हुआ मुनाफा उसको इतना खता नहीं
अब सारीं नजरें थी टिकी अब क्या लाएगा ये उसपर जो,
हुआ बड़ा विस्फोट लैब में वहीं साँस ले आखिर वो।
उसके बाद हुआ यूँ चर्च -विमर्श के कैसे मौत हुई,
ढूँढा फिर भी नहीं चला कुछ पता हो गई बात नई।
जो जो संशोधक थे उनकी एकेकों की मौत हुई,
कोई षडयंत्रों से करता रहा है हत्या बात यही।
जिंदा बचा अकेला उसको सपना आया मरने का,
समझा आखिर राज मौत का अब ना कारण डरने का।
झट से गया वो प्रयोगशाला उसने खोली अलमारी,
ढूँढी किताबें जहाँतहाँ फिर खोजी एक थी बीमारी।
इलाज जिसका था इक मौत के कभी ना मरना फिर तुम भी,
फिर चाहे लिख जाओ मौत के बन जाओ ईश्वर तुम भी।
उसने भी कर ले ली खुदखुशी वैज्ञानिक ना बन पाया,
लेकिन वो ना जी पाया,बाद में कोई मर पाया।