मेरा दुश्मन किनारा था
मेरा दुश्मन किनारा था
बिछड़ते पंछियों को छूटते घर का सहारा था
बड़ा देखा था सपना मैंने धुँधला-सा नज़ारा था,
वो आईं जोर की लहरें बहा के ले गईं सब कुछ
वही लेके ना ड़ूबा था मेरा दुश्मन किनारा था।
सफर में तय किया कि अब कोई रिश्ता नहीं होगा
किसी से कुछ ना लेना-देना अब पाया नहीं खोगा,
सजाकर मैंने रक्खी थी नई मुस्कान चेहरे पर
अभी खुशियाँ मनाने का है मौसम अब नहीं रोगा।
पलटकर क्यों भी देखूँ मैं मुझे ना याद है अब कुछ
ये मैंने दिल है जब खोया तभी से खो गया सब कुछ,
हुआ गुमनाम रस्ते पर भटकता ये किसे माँगे ?
जगह दिल में न दे पाए हुआ है क्या कहाँ कब कुछ !
अभी हैं आखिरी साँसे बची मेरे ही हिस्से में
हुआ पागल मैं करता था तुम्हारे-मेरे किस्से में,
कभी आओगी ना दर पर सफर ही ये रहा अनजान
कहाँ की अब नमी आँखों में मायूसी है रिश्तों में।
पुकारोगे निहारोगे सराहोगे जताओगे
वो जो लम्हा ना जी पाया वो अब क्या तुम बिताओगे ?
बहुत-सी ठोकरें खाई हैं मैंने अब नहीं बाकी
जो जाते जाते तूने दी कसम अब ना सताओगे।