माँ के हाथ का खाना
माँ के हाथ का खाना
माँ मैने कह दिया ना तुमसे ये ना खाऊँ सब्जी मैं,
अब ना देना मुझे टिफिन भी खा लूँगा अब कुछ भी मैं।
रोहन कर ही रहा शरारत फिर से आई बुआ वहीं,
रहती बगल में वो उसके और सिखाती उसको चीजें नईं।
अब ना आएगा तुमको ये माँ का समझ में अद्भुत प्यार,
पाला पड़ जाएगा इन सब कठिनाई से होंगी आँखें चार।
कैसे कैसे लोग हैं इसमें दुआ करे कोई दे दे शाप,
जब घूमोगे दुनिया तुम तब पता चलेगा अपने आप।
अब जब आया रोहन है घर तारीफों के बाँधे पूल,
माँ के हाथ का खाने में तो मजा ही कुछ है, मेरी भूल।
अब वो सीख रहा है खाना बुआ खा रही सबक मिला,
माँ का लाडला बता रहा है मित्रों को भी ,'नमक मिला।'