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Somesh Kulkarni

Drama

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Somesh Kulkarni

Drama

फिर वही कहानी

फिर वही कहानी

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माँ-पिताजी के हाथों को पकड़ चला था

दूजे गाँव,

वहाँ था उसका मामा रहता मिलने चला था

चलकर पाँव।


बीच में रुक गए खाना खाने दिखा घना-सा

अच्छा पेड़,

ठहर के खा-पी गए वे सब कुछ बूढ़े होने

चले अधेड़।


बतियाते इक-दूजे में वे क्या होगा जब

हम ना हो,

क्या ले खाएगा ये बच्चा जीएगा कैसे

क्या हो?


तभी शोर से हुए रुबरु वे दोनों इक टोली के,

डाकू आए बंदूकें ले बोल हैं ऊँची बोली के।


मुखिया ने लगवाया निशाना बच्चे की माँ पैर

पड़े,

उसको छोडो मुझ को मारो दोनों यूँ हीं खूब

लड़े।


अंत में बिछ गई दोनों की जब लाशें खून से

लथपथ थी,

बच्चे को ना सुधबुध अपनी चारों ओर यूँ

दहशत थी।


बच्चा रो रोकर ही बन गया मन का रोगी उसी

जगह,

मुखिया बोला ये भी बन जाएगा इक दिन

मेरी तरह।


यही कहानी दोहराई है नियती ने बच्चे के साथ,

लेकिन इसमें रहे हमेशा सर पर बच्चे मेरा हाथ।


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