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मैं गड़रिया हो जाना चाहता हूँ

मैं गड़रिया हो जाना चाहता हूँ

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पहाड़ों के तीख़े किनारों से

उतर रहा है

अपनी बकरियों के साथ।


जुबान पर एक मुलायम पत्ता

रख कर

बर्फ़ पिघलाने वाली भाप छोड़ता।


बकरियों तक जा रही

ख़राब मौसम की चेतावनी

और प्यार से लिपटी हुई

रुई के गिलाफ़ जैसी भाषा में

वह जो कुनबे से बात कर रहा है।


बादलों की तरह

उतर रहा है घाटियों से

सुनो, मैं गड़रिया हो जाना चाहता हूँ।


वह जो सर्दियों की टोपियाँ

बुन रही है

और गोस्त बना रही है

उसका प्यार बह रहा है

जिसकी रगों में।


वही गड़रिया

सबसे मुश्किल रास्तों पर

धूल उड़ाता चला आ रहा है

द्रास से जम्मू तक।


मैं हवा में अपना सिर हिलाता

वैसे ही गुजारूं

जिंदगी के सबसे कठिन दिन।


तुम्हारी बुनी हुई जुराबों से

बूट की बर्फ़ में अपना

पाँव गर्म रखते

सबसे ठन्डे दिनों में।


थोड़े से गर्म मौसम की तलाश में

वह जो सबसे खतरनाक दर्रों

को पार कर रहा है।


मैं भी गुजारूं

ऐसे ही कुहरे भरे दिन

मैं गड़रिया हो जाना चाहता हूँ।।


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