मैं नहीं होना चाहता हूँ
मैं नहीं होना चाहता हूँ
मैं वह गढ्ढा होना चाहता हूँ
जिसमें बाघ और बकरी
दोनों पानी पीने आते हों।
मैं वह सीढ़ी नहीं होना चाहता हूँ
जिससे जो जितना गिरता है
वह उतना ही ऊँचा चढ़ता जाता है।
मैं वह नदी नहीं होना चाहता हूँ
जो जितनी गंदी होती जाती है
उसके किनारे उतने समृद्ध होते जाते हैं।
मगर मैं वही गढ्ढा,
वही सीढ़ी और वही नदी
होता जाता हूँ,
जो नहीं होना चाहता हूँ।