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मगर मैं वही गढ्ढा, वही सीढ़ी और वही नदी होता जाता हूँ, जो नहीं होना चाहता हूँ। मगर मैं वही गढ्ढा, वही सीढ़ी और वही नदी होता जाता हूँ, जो नहीं होना चाहता हूँ।
टूटकर किया जाने वाला काम और देह तोड़ती हुई बुखार। टूटकर किया जाने वाला काम और देह तोड़ती हुई बुखार।
मैं भी गुजारूं ऐसे ही कुहरे भरे दिन मैं गड़रिया हो जाना चाहता हूँ। मैं भी गुजारूं ऐसे ही कुहरे भरे दिन मैं गड़रिया हो जाना चाहता हूँ।
वेदना का शूल गड़ता है, ये मेरा दुःख एक आवा है घड़ा मुझ में रोज गढ़ता है वेदना का शूल गड़ता है, ये मेरा दुःख एक आवा है घड़ा मुझ में रोज गढ़ता है
अभी तो ताज़ा है ये ज़ख्म इसका मरहम है फ़ानी ए वक्त में ज़खमेकुहन भी जाते हैं । अभी तो ताज़ा है ये ज़ख्म इसका मरहम है फ़ानी ए वक्त में ज़खमेकुहन भी जाते हैं ।