मैं देवी नहीं हूँ
मैं देवी नहीं हूँ
मैं कौन हूँ ? मैं क्या हूँ ?
मेरी पहचान,मेरा अस्तित्व क्या है ?
कभी मेरे हाथों में किताब दिखती है
कभी इन हाथों में कलम सजती है
कभी मेरे हाथों में आटा लगा होता है
कभी मैने झाड़ू पोंछा पकड़ा होता है
कभी हाथों में भर-भर चूड़ियाँ होती हैं
कभी हाथों में घर की चाबियाँ होती हैं
कभी हाथों में कामों की लिस्ट होती है
कभी इनमें महीने भर का राशन होता है
कभी हाथों में ऑफिस लैपटॉप होता है
कभी इनमें कार का स्टीयरिंग होता है
कभी मेरे हाथों में मेरी संतान होती है
कभी मेंहदी तो कभी झाड़न होती है
कभी हाथों में बुजुर्गों के पाँव होते हैं
क्या कहा ? मैं देवी ही हो सकती हूँ....
अरे नहीं, नहीं ....मैं तो एक आम स्त्री हूँ
जिसके हाथों में सारे कर्तव्य होते हैं......
सिवाय अपने अधिकारों के.....