मासूम लड़की
मासूम लड़की
एक लड़की भोली-भाली सी,
प्यारी मासूम अनजानी सी।
पेड़ की सूखी डाली सी,
चुपचाप बैठी उदास सी।।
फटे कपड़ों में माँग रही थी खाना,
पेट की आग बुझाने को।
घुंघराले उसके बाल थे,
आपस में उलझे जाल थे ।।
जीवन के प्रश्नों से सदैव,
लगते जी के जंजाल थे।
जगत में कई बच्चे हैं ऐसे,
जिन्हें मयस्सर नहीं खाना दो जून का।।
न तन ढकने को कपड़ा,
ना ही रहने का कोई ठिकाना।
मिल जाएंगे ढेरों ऐसे बच्चे,
मंदिर,मस्जिद,चर्च,गुरुद्वारे,
क्यों नहीं ईश्वर की उन पर दया??
किस गलती की मिली है सजा !!
कई तरस रहे हैं संतान को,
अहर्निश प्रार्थना करते।
वारिस के लिए दिन रात,
दीखते नहीं क्या यह मासूम बच्चे?
क्या है इनमें कमी?
अपनालें तो संवर जायेगी,जिंदगियां कई।।
गिद्ध दृष्टि पड़ गयी यदि,
किसी अराजक तत्व की,
खो देंगे मासूम बचपन,
बन जाएंगे सौदागर मौत के।
मासूम बेटियाँ होंगी,
मजबूर तन बेचने को कहीं।।
विचार ही कितना है डरावना?
सोच से ही लगे पसीने छूटने,
इससे पहले कि कुछ अमंगल हो,
आओ मिलकर भूख उनकी मिटायें।।
पढ़ना-लिखना सिखाकर,
अच्छा नागरिक इन्हें बनाएं।
आओ मिलकर हाथ बढ़ाएं,
सपनों का सुखी भारत बनाएं।।