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Usha Shrivastava

Others

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Usha Shrivastava

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रिश्तों की गहराई

रिश्तों की गहराई

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अब यह बीते समय की बातें हो गयी,

जब आपस में अच्छा मेल-जोल था!

रिश्ते सभी निभाते थे, आपस में रूठते मनाते थे,

पैसा चाहे कम था , जीवन में ना कोई गम था !! 

मकान चाहे कच्चे थे, रिश्ते सारे सच्चे थे,

चारपाई पर बैठते थे, पास-पास रहते थे!

अब सोफे-डबल बेड आ गए, दूरियां हमारी बढ़ा गए,

छतों पर अब न सोते हैं, बात-बतंगड़ अब न होते हैं!!

आंगन में वृक्ष थे, सांझे सुख-दुख थे,

सांझा चूल्हे पर मिल-जुलकर खाना बनाते थे!

दरवाज़ा खुला रहता था, पथिक आ बैठता था,

चिड़िया चहकती, गाय रंभाती, कौवे कांवते, कोयल गाना गाती!!

मेहमान आते-जाते, जिंदगी सुख-चैन से बिताते,

साइकिल, ट्रांजिस्टर ही पास था, आपस में बड़ा विश्वास था!

मोटर-बंगला बहुत कुछ पा लिया, दुख-जलन, क्लेश अपना लिया,

प्रतिस्पर्धा की दौड़ में , जीवन का सुख चैन गंवा दिया।।

 


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