रिश्तों की गहराई
रिश्तों की गहराई
अब यह बीते समय की बातें हो गयी,
जब आपस में अच्छा मेल-जोल था!
रिश्ते सभी निभाते थे, आपस में रूठते मनाते थे,
पैसा चाहे कम था , जीवन में ना कोई गम था !!
मकान चाहे कच्चे थे, रिश्ते सारे सच्चे थे,
चारपाई पर बैठते थे, पास-पास रहते थे!
अब सोफे-डबल बेड आ गए, दूरियां हमारी बढ़ा गए,
छतों पर अब न सोते हैं, बात-बतंगड़ अब न होते हैं!!
आंगन में वृक्ष थे, सांझे सुख-दुख थे,
सांझा चूल्हे पर मिल-जुलकर खाना बनाते थे!
दरवाज़ा खुला रहता था, पथिक आ बैठता था,
चिड़िया चहकती, गाय रंभाती, कौवे कांवते, कोयल गाना गाती!!
मेहमान आते-जाते, जिंदगी सुख-चैन से बिताते,
साइकिल, ट्रांजिस्टर ही पास था, आपस में बड़ा विश्वास था!
मोटर-बंगला बहुत कुछ पा लिया, दुख-जलन, क्लेश अपना लिया,
प्रतिस्पर्धा की दौड़ में , जीवन का सुख चैन गंवा दिया।।
