होश में रह तू दुश्मन
होश में रह तू दुश्मन
होश में रह तू दुश्मन, क्यों व्यर्थ शरारत करता है -2
बार बार गुस्ताखी करता, क्या तेरी औकात है ।
होश में रह तू दुश्मन, क्यों व्यर्थ शरारत करता है
बार-बार बजाकर बिगुल क्यों हमको ललकार रहा,
छुट-पुट हमले करके शेरों को नींद से जगा रहा
होश में रह तू दुश्मन --------------।।
उठे शेर तो खैर नहीं है, क्यों अपनी मौत बुला रहा ?
मक्कारी दिखलाई तूने तो, बस खतम कहानी है,
सच बतला तूने, अब क्या मन में ठानी है?
होश में रह तू दुश्मन, क्यों व्यर्थ शरारत करता है---॥
अब गलती न करना ऐसी, वरना तू मुंह की खाएगा,
जो भी लड़ने सामने आया, भारत सबक सिखाएगा।
होश में रह तू दुश्मन .......................... ।।
बार-बार गलती दोहराता, क्या समझ में कुछ नहीं आता है?
घुटने टेक या चुपचाप बैठ, वरना तेरी खैर नहीं
मत दुस्साहस कर तू इतना वरना तू बर्बाद है।।
होश में रह तू दुश्मन .......................... ।।
भूल गया क्या इतनी जल्दी, रहता कुछ क्यों याद नहीं
अब की जो गड़बड़ फिर से तूने, तो सुनेगा कोई तेरी फ़रियाद नहीं।।
होश में रह तू दुश्मन .......................... ।।
