मानव
मानव
संघर्ष भरे इस जीवन में
एक पल कि बात सुनाती हूं
कुछ अपनी भी बताती हूं
कुछ गैरो का देख सुनाती हूं।
जिस रूप में देखा इंसानों को
वो रूप अनोखा लगता है
रंग रूप का कोई भेद नहीं
बातों का धोखा लगता है।
कह देना, सुन लेना,
बड़ा अकुंचक लगता है
मौसम विनयम में विलंब हो जाए
लोगों में विलंब ना लगता है।
यहां पल पल में बदले जाते हैं रिश्ते
दिन की तो कोई बात नहीं
जो बिछड़ चुके है वर्षों से
उनकी तो कोई बात नहीं।
कहने को तो रूप रूहानी है,
इसकी भी अजब कहानी है
जो बसंत सा खिल जाए
मानव ये तेरी कहानी है।।