मानव अब पशु भी ना रहा है
मानव अब पशु भी ना रहा है
कितना कुछ तो इस जग में देख लिया ,
अब क्या ये भी देखना बाकी रहा है ?
इंसान धीरे धीरे पशु से पराजित होकर ,
खुद पशु में परिवर्तित होता जा रहा है !
जीवन के दुर्गम मार्ग पर चलकर ,
अपना अदम्य साहस खोता जा रहा है!
ज्ञानेंदृयाँ सुप्त सी पड़ती जा रहीं हैं ,
तभी अपनों का दिल दुखाता जा रहा है!
मानव जन्म कितना उत्तम व दुर्लभ है,
आज मानवता का मूल भूलता जा रहा है!
चाहे पशु से करे बराबरी या समकक्ष बने,
सच तो है कि मानव अब पशु भी नहीं रहा है!