"माँ"
"माँ"
एक बार तू प्यार की थपकी मुझको फिर से दे दे माँ l
पास मेरे आने की आहट, फिर से मुझे सुना दे मां ले
बहुत दिनों से ताक रही थी, आहट तेरे कदमों की माँ l
दूर कहीं से आ रही थी, झंकार तेरी पायल की माँ ले
सुन तेरी पायल की छनछन, पहुंच गई मैं बचपन में माँ l
वो पायल तूने घुंघरू वाली, बांधी थी मेरे पैरों में माँ ll
सारे घर में पहन के उसको, कोने-कोने डोली मैं माँ l
छुन छुन सुन पायल की धुन तू, मन ही मन हर्षाती माँ ll
पास बुलाती चूम के माता, हृदय से अपने लगाती माँ l
जब मैं छुप जाती दूर कहीं, तो घुंघरू की धुन सुनकर तू, मुझको ढूंढ निकालती माँ ll
फिर हुआ एक दिन ऐसा भी, आ गया कहीं से मदारी माँ l
ले चला साथ वो अपने, मेरी पायल के सारे घुंघरू माँ ll
खड़ी अचंभित मूक बनी मैं, ताक रही थी पायल माँ l
छुन छुन करती पायल वो अब रह गई निरर्थक बन के माँ ll
अब कैसे ढूँढ़ोगी मुझको, अब नहीं मैं मिलने की माँ l
इसीलिए कहती हूं फिर से, मुझको थपकी दे दो माँ ll
