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Madhu Gupta "अपराजिता"

Fantasy Inspirational

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Madhu Gupta "अपराजिता"

Fantasy Inspirational

"माँ"

"माँ"

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एक बार तू प्यार की थपकी मुझको फिर से दे दे माँ l

पास मेरे आने की आहट, फिर से मुझे सुना दे मां ले


बहुत दिनों से ताक रही थी, आहट तेरे कदमों की माँ l

दूर कहीं से आ रही थी, झंकार तेरी पायल की माँ ले


सुन तेरी पायल की छनछन, पहुंच गई मैं बचपन में माँ l

वो पायल तूने घुंघरू वाली, बांधी थी मेरे पैरों में माँ ll


सारे घर में पहन के उसको, कोने-कोने डोली मैं माँ l

छुन छुन सुन पायल की धुन तू, मन ही मन हर्षाती माँ ll


पास बुलाती चूम के माता, हृदय से अपने लगाती माँ l

जब मैं छुप जाती दूर कहीं, तो घुंघरू की धुन सुनकर तू, मुझको ढूंढ निकालती माँ ll


फिर हुआ एक दिन ऐसा भी, आ गया कहीं से मदारी माँ l

ले चला साथ वो अपने, मेरी पायल के सारे घुंघरू माँ ll  


खड़ी अचंभित मूक बनी मैं, ताक रही थी पायल माँ l

छुन छुन करती पायल वो अब रह गई निरर्थक बन के माँ ll


अब कैसे ढूँढ़ोगी मुझको, अब नहीं मैं मिलने की माँ l

इसीलिए कहती हूं फिर से, मुझको थपकी दे दो माँ ll



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