लिख रही हूँ मैं
लिख रही हूँ मैं
उन दरख्तों की दरारों में
जहाँ न तुम हो और न मैं
लिख रही हूँ मैं।
दिमाग खाली है पर दिल
भरा हुआ है विचारों से
कैसे हैं ये विचार जो
समझ में नहीं आ रहे
आँखों में धुंधलापन सा है
पर कलम चल रही है
और लिख रही हूँ मैं।
बारिश हो रही है
खिड़की खुली है
बाहर झांकती
बंद घर को ताकती
सोच रही हूँ गाल पर
लिए हाथ
सच क्या है झूठ क्या है
पता नहीं
बाहर क्या है भीतर क्या है
पता नहीं
विचारों औ
र शब्दों में
जूझ रही हूँ शायद
कैसे लिखूँ और क्या लिखूँ ?
पर कलम चल रही है
और लिख रही हूँ मैं।
बारिश हो रही है
अब भी
पानी से भरे हैं खेत
बारिश की टप-टप
और मेंढ़क की टर्र टर्र
की आवाजों में
भ्रमित हो रहे हैं मेरे विचार !
बर्तनों की आवाज रसोई से
गाड़ियों की आवाजें सड़क से
टकरा रहे हैं मेरे विचारों में
और टूट कर शब्दों में
बिखर रहे मेरे विचार,
उन्हीं शब्दों को पनाह देने
की कोशिश कर रही हूँ मैं
लिख रही हूँ मैं।।