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Priyanka Dhibar

Action Classics Inspirational

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Priyanka Dhibar

Action Classics Inspirational

लड़की,तुम्हारा घर कौन सा है?

लड़की,तुम्हारा घर कौन सा है?

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"आरे ओ लड़की सुनो जरा,

आप तो पैदा हुए हैं

दुसरे घर के लिए,

क्या यह आपका अपना घर है?

वही तो है तुम्हारा असली घर ।"


जिस घर में जन्म हुआ, जिस घर में बचपन बीता

जवानी आते ही वो घर अचानक अपना घर नहीं रहा।

शादी के बाद सुनना पड़ा, "सुनो बहू, यह तम्हारी ससुराल है।

यहां मायके का कोई राज नहीं चलेगा।"

मेरी बेटी पूछती है, "माँ, यह तुम्हारा ससुर का घर है, वह तुम्हारा पिता का घर है,

फिर तुम्हारा घर कौन सा है?"


मेरी बेटी अभी बहुत छोटी है, केवल छह साल की,

उनके दिमाग समाज का यह दायरा कैसें समझेगा?

संचित क्रोध और अभिमान मानो

उसकी बातें सुनकर बाहर आ गया,

अब उनके मन में रोज ऐसा सवाल उठता रहता है।


बच्ची ने जाकर दादी से फिर प्रश्न किया -

"मैं यहाँ रहती हूँ इसलिए ये मेरी घर है, पापा का घर है क्युंकि पापा भी रहते है,

चाचा, दादा, तुम रहते हो, तो तुम्हारे भी घर है,

माँ भी यहाँ रहते है तो फिर क्यूँ ये मा का अपना घर नहीं है ?"

जवाब न दे पाने से दादी ने हाथ में थमा दी चॉकलेट।


वाकई समाज के कितना अजीब नियम है ना?

जो हमेशा तुम्हारा रहा वह वास्तव में तुम्हारी नहीं है,

और जिसे तुम कभी पहचानते भी नहीं, वह तो विवाह से पहले ही तुम्हारी है।

कैसे अचानक खुद अपने ही परिचित घर में

दो तीन दिन के मेहमान बन जाते हैं ना।


अब और भी देखो जब कोई पूछे, "घर कहाँ है?"

उत्तर आते हैं, "मायके इस स्थान पर है और ससुराल उस स्थान पर है।"

कभी भी नहीं कह सकता "मेरी घर इस जगह पर है!"

दिन बीतता है, उम्र बढ़ती है, पति का घर, ससुर का घर

बदल जाता है बेटे के घर में,

पहले पिता का घर, फिर पति या ससुर का घर,

उसके बाद बेटे का घर -

ऐसे करते-करते मेरी अहंकार गायब हो जाते है,

ढूंढते ढूंढते कितना समय बीत जाता है पता ही नहीं चलता।


लोगों को अपना बनाने की कोशिश में कितना कुछ सहना पड़ता है,

दरअसल एक लड़की की पूरी जिंदगी बीत जाती है,

इस प्रकार मानते हुए और मनाते हुए

चाहे वह पिता का घर हो या ससुराल का

या फिर बेटे का घर।


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