लड़कियाँ
लड़कियाँ
लड़कियाँ अलग ही
मिट्टी की बनी होती है
सब सह लेती हैं
और ऊफ्फ तक नहीं करती
जो बाबुल के सपनों को
पूरा करने का जुनून रखती है
माँ के कामों में भी
हाथ बटाती हैं
भाई के हर बात का
ख्याल रखती हैं
इस बात का पता तो
तब चलता है
जब वह एक दिन
घर से विदा होकर जाती है
किसी और का घर संवारने
जैसे एक विकसित पौधे को
उखाड़ कर कही और
रोप दिया गया हो
फिर भी वह मुस्कुराती है
आंखों के अश्रु को
छिपा लेती है
माँ और पिता को उदास
नहीं करना चाहती
भाई को दुखी
नहीं करना चाहती
छोटे-छोटे कष्टों का तो
मायके में जिक्र तक
नहीं करती
बस इसलिए कि
उनके चेहरे पर
उदासी की लकीर
नहीं देखना चाहती
अपने दुख को छिपा
मुस्कुराहट लेकर पीहर आती है
अच्छे-अच्छे बातों को ही
बताती है वह
लड़कियाँ अलग ही
मिट्टी की बनी होती है ।
