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Brijlala Rohan

Tragedy Inspirational

4  

Brijlala Rohan

Tragedy Inspirational

लौट जा मुसाफ़िर अपनी गाँव --

लौट जा मुसाफ़िर अपनी गाँव --

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धूप चढ़ रही है ! जरा ठहर जा वो मुसाफ़िर!         

बैठ जा कुछ पल ठंडी छाँव में ।

कुछ पल बिताकर चले जाना फिर तुम अपनी गाँव में ।

पर यहाँ वो आरामदायक समीर कहाँ तुम्हें मिलेगी ?      

यहाँ तो है तो दमघोंटू बदन को बेधने वाली मीठा जहर !  मगर नाम उसका शीतलक है !

मेरे पास उपहार ही कहाँ कुछ जो तुझे मैं भेंट कर सकूँ !    

तुम तो रोज अमूल्य, अमृत- तुल्य उपहार प्रकृति से पाते हो ।

यहाँ तो बड़े - बड़े साहबों के बड़े - बड़े बंगले हैं !         

बोझ उनपर इतना लदी हुई मानो न जाने कौन घर हैं ? कौन जंगलें हैं ? 

यहाँ तुम्हारे गाँव जैसा थोड़े ही कोई मधुशाला है !         

यहाँ तो पग - पग पर दिखती विष की प्याला है ।

व्यर्थ ही मैं तुझे रूकने को बोल रहा हूँ !

रूआँसे दिल से तेरे लिए विदा संदेश खोल रहा हूँ । 

लौट जा अपनी गाँव में वो मुसाफिर!

यहाँ प्रतिपल- प्रतिक्षण घुटता जीवन है ।

जहर भरी यहाँ की हवा ,पानी दूषित यहाँ कण -कण है ।

लौट जा वो मुसाफिर!                          

फिलहाल कुछ पल धूप ही सही ,पर आगे छाँव- ही - छाँव है !

पुकार रहा तुझे वो अपना आशियां ,पुकार रहा तुझे तेरा अपना गाँव है।


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