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Meenaz Vasaya. "મૌસમી"

Classics Fantasy

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Meenaz Vasaya. "મૌસમી"

Classics Fantasy

क्यूँ देखते हो ?

क्यूँ देखते हो ?

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महसूस करनी हो तो सागर की गहराई यो को करो

उस के खारेपन कि तरफ क्यूँ देखते हो ?

महेदुस करनी हो तो फूलों की महक को करो

कांटों की तरफ क्यूँ देखते हो ?


महेश करनी हो तो सूरज की रोशनी को करो

उस के उग्र ताप की तरफ क्यू देखते ही?

माहेसुस करनी हो तो चांद की चांदनी को करो

उस के पर लगे हुए दाग को क्यूँ देखते हो ?


जिंदगी में खुश रहें है तो

सुख की तरफ देखो

दुख की तरफ देखते ही क्यूँ हो ?

अगर अपनों का प्यार पाना है तो

उस की खूबी ओ को देखो

कमी ओ की तरफ क्यूँ देखते हो ?


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