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Savita Verma Gazal

Romance

3  

Savita Verma Gazal

Romance

"क्यों"

"क्यों"

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सुनो....गुस्सा नहीं ये प्यार है...इनकार नहीं ये इकरार है

बस ! यूँ ही तुम्हें करीब लाने का....तुम कब समझ पाये

बढ़ते गये जुल्मों सितम तुम्हारे...

कभी मना भी नहीं पाये रूठने पर तुम मुझे...

मैंने देखा था....उस दिन तुम्हें...

मना रहे थे किसी को...फोन पर...उस दिन मुझे लगा...

वहम था मेरा...वो वहम नहीं था....हाँ..सच था...

तुम हर रोज़ किसी न किसी बहाने...

नाराज़ हो चले जाते...बालकनी में...

और मैं आँसुओं से भीगी आँखें लिये...

बढ़ती उसी तरफ़...लेकिन....ठिठक जाते पाँव

सुनकर तुम्हारी हँसी...तुम रात भर बतियाते रहते....

और मैं चाहकर भी पूछ नहीं पाती थी...

खुद से पूछती हर बार ही....आखिर...मैं यहाँ हूँ तो क्यों ?

तुम यहाँ होकर भी नहीं तो क्यों ?....॥



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