क्यों सस्ते हो गए इंसान--?
क्यों सस्ते हो गए इंसान--?
सोशल मीडिया पर विनम्र श्रद्धांजलि,
ओम-शांति-ओम हैं।
थिरकती हैं उंगलियाँ
जाने वाले यह सब कौन हैं--?
कुछ चेहरे जाने-पहचाने हैं
कुछ बिल्कुल अनजाने हैं।
अनजाने, मगर किसी घर के चश्मे-ए-चिराग हैं।
माहौल बड़ा गमजदा
और वक्त क्रूर हैं
ए! मालिक बता- तुझे क्या मंजूर है--?
तेरी रजा का मुसाफिर
तेरे रहमों-करम में जी हुजूर हैं।
सही सलामत बक्श दो जान
हवा महंगी और क्यों सस्ते हो गए हैं इंसान--?
देख कर विनाश के मंजर
तू भी रोता होगा
शरशय्या पर चैन से
तू भी कहाँ सोता होगा।
