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Uday Pratap Dwiwedi

Tragedy Inspirational

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Uday Pratap Dwiwedi

Tragedy Inspirational

क्यों जीत रहा है अहंकार

क्यों जीत रहा है अहंकार

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अपने पैरों पर बार-बार 

खुद ने मारी खुद से कुठार 

सो गया स्वप्न खो गई नींद 

दिन पर छाई आलस्य धुंध 

थम गया कहीं सूरज का अश्व 

कोई कारण होगा अवश्य 


था हुआ अभी तो नव विहान 

आंखों आंखों में आसमान 

जन जीवन में नूतन उमंग 

प्रकृति ने भी बदला था रंग 

खिल गई वादियां कंत कंत

पतझड़ था फिर आया बसंत 


थी खिली धूप कब हुई रात 

कुछ पता नहीं क्या हुई बात 

क्यों द्वेष घृणा का मकड़जाल 

फैला कर खुश हो रहा काल 

क्यों खत्म हो रहा प्रीत प्यार ?

क्यों जीत रहा है अहंकार ?



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