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Uday Pratap Dwiwedi

Abstract

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Uday Pratap Dwiwedi

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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वो न मस्ज़िद में मिला और ना शिवाले में मिला।

इतनी पी ली यार, कल भगवान नाले में मिला।।


मैं अंधेरे को अंधेरे में कहां तक  ढूंढ़ता।

मन के अन्दर का अंधेरा तो उजाले में मिला।।


खाके छप्पन भोग भी मुझे ' वो मज़ा आया नहीं।

माँ के हाथों जो मज़ा सूखे निवाले में मिला ।।



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