क्या करूँ
क्या करूँ
क्या नाम दूँ
क्या पैगाम दूँ
दिल कहता है
मगर बंद होठ खुलते नहीं
मौन कथन का अभिप्राय
समझती नहीं वो
अतः लौट आता हूँ
खुद मे - निराश , निःशब्द
क्योंकि बुद्धि को
अवसर मिल जाता है
सोचने का
तर्क करने का
लौटना नहीं चाहता मैं
फिर भी लाचार हूँ
क्या करूँ।