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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Romance

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Romance

क्या करूँ

क्या करूँ

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क्या नाम दूँ

क्या पैगाम दूँ

दिल कहता है

मगर बंद होठ खुलते नहीं


मौन कथन का अभिप्राय

समझती नहीं वो

अतः लौट आता हूँ

खुद मे - निराश , निःशब्द


क्योंकि बुद्धि को

अवसर मिल जाता है

सोचने का

तर्क करने का


लौटना नहीं चाहता मैं

फिर भी लाचार हूँ

क्या करूँ।


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