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क्या करूँ मैं

क्या करूँ मैं

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इस फटी किताब का मैं क्या करूँ

इस पुरानी याद का मैं क्या क्या करूँ


मिट चुकी हैं ख्वाहिशें सब

कोई दोस्त नया न आएगा अब

फिर अचानक क्यों उमड़ने लगी हैं

मर चुकी थी जो भावनाएं कब की

आज जब कुछ भी नहीं बस में मेरे

क्यों तरंगे भर रही है जिंदगी

अब किसी के साथ का मैं क्या करूँ

इस नए जज्बात का मैं क्या करूँ


सूख कर बंजर हुई धरती मेरी

दाने दाने को तरसता गांव था

रास्ते तप रहे थे कड़ी धूप में

छालों से जलता सबका पांव था

फिर अचानक आज ये बादल हैं आये

आज जमकर बरसाने को हैं ये छाए

बिन फसल इस बून्द का मैं क्या करूँ

इस नयी बरसात का मैं क्या करूँ


याद है कैसे खुले इस आसमान में

हम गिना करते थे नभ के चाँद तारे

और कभी जगमगाते जुगनुओं से

टिमटिमा जाते थे अम्बर के सितारे

बहुमंज़िली इमारतों से ढक गया सब

१० फुटी इन छतों से दिखता नहीं अब

छुप गए इन सितारों का क्या करूँ मैं

इस चमकती रात का मैं क्या करूँ


सुख कमाने की ललक ने

दुःख हमें कितना दिया

छोटी छोटी चादरों ने

पांव तक कटवा दिया

नींद आँखों की चुरा ली

ख्वाबों ने क्या तोहफा दिया

नींद खोयी आँख का मैं क्या करूँ

इस नयी सौगात का मैं क्या करूँ


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