. मैं कौन हूँ
. मैं कौन हूँ
क्या पता मैं कौन हूँ ?
इसलिए मैं मौन हूँ,
शहर की इस भीड़ का
मैं भी तो एक अंग हूँ,
फिर क्या ऐसी बात है
जो भीड़ से मैं तंग हूँ।
जब भी तुमको देखता हूँ
जी में आता है कि बोलूं,
दिल के बंद दरवाजों को
प्यार की आहट से खोलूं,
कुछ सोचकर आगे बढ़ा
पैरों से रोड़ा अड़ा,
रुक गया ये सोचकर
क्या पता मैं कौन हूँ ?
इसलिए मैं मौन हूँ।
लोग मेरे आसपास
लूटने की करते तलाश,
जानकर भावों को उनके
मैं हुआ करता निराश,
फिर भी दिल में एक आस
मैं बुझाऊँ उनकी प्यास,
कौन किस चोले में है
जानता सब कुछ हूँ मैं,
किसके दिल में क्या छुपा है
पहचानता सब कुछ हूँ मैं,
फिर भी अपने आसपास
जब भी जाना चाहूँ मैं,
ये सोचकर रुक जाऊं मैं,
क्या पता मैं कौन हूँ?
इसलिए मैं मौन हूँ।
नाम तक बदनाम है
बस यही पहचान है,
रिश्ता जोड़ूँ क्या मैं उनसे
मिट चुका है नाम भी
इंसनियत तक का जिनसे,
सोचकर शर्मिंदा हूँ
क्यों यहाँ मैं जिन्दा हूँ,
आदमी का खून
कुछ आदमी हैं पी रहे,
हैवान हैं बने हुए
और झूमकर हैं जी रहे,
आदमी का रूप
कुछ इस कदर है मिट चुका,
इंसानियत का दिया भी
अब तलक है बुझ चुका,
दिनरात मैं सोचूं यही
खुद को कैसा इंसान कहूं ?
ये सोचकर पर चुप रहूं
क्या पता मैं कौन हूँ?
इसलिए मैं मौन हूँ।
