क्या कभी दोस्त हो सकते ये ?
क्या कभी दोस्त हो सकते ये ?
एक लड़का और एक लड़की
दो पहलू है एक सिक्के के
क्या कभी दोस्त हो सकते ये ?
जब बच्चे थे मासूम से ये
निश्वार्थ निरंकुश भाव थे इनमें
बहते जल की धारा के जैसे
तब तो ये साथी थे सच्चेय़
ना थी तब आशा कुछ पाने की
ना ही थी निराशा साथ छूट जाने की
अजब अनोखे अहसास साथ थे
बेनामी जज़्बात साथ थे।
भाव बहुत तब निश्छल थे
साथ बहुत तब पक्के थे
जब कदम रखे जवानी की दहलीज़ पर
तब भी थे ये सिक्के के दो पहलू।
पर हर चालकी साथ थी इनके
निश्वार्थ भाव सब स्वार्थ में बदले
आशाओं ने भी कदम जमाए
भाव निराशा के भी जागे।
खो गया वो अहसास अनोखा
हर जज़्बात को नाम मिला अब
निश्छल भाव खो गये कहीं सब
पक्के साथी हर कदम छूटते गये।
प्रश्न अभी भी रह गया वहीं पर
एक लड़का और एक लड़की
दो पहलू है एक सिक्के के
क्या कभी दोस्त हो सकते ये ?
