क्या चाहिए ज़िन्दगी से
क्या चाहिए ज़िन्दगी से
ज़िन्दगी
एक अंधी दौड़ बन गई है
सभी भागते ही जा रहे हैं
रूकना कहाँ है?
कौन सी मंजिल है!
ये भी नहीं जानते हैं ।
क्या चाहिए ज़िन्दगी से?
धन-दौलत, गहने-जेवर, हीरे-जवाहरात !
या अपनों के बीच सुकून भरे चंद लम्हात!
रिश्तों से गरमाहट गायब होने लगी है,
दौलत की हवस रिश्तों को खोखला कर रही है ।