कविता
कविता
कविता एक अनुभूति है,
जो आती है एक प्रेरणा बन,
एक कवि के अंतस में,
जगा देती हैं एक साधक को,
पूरी करने हर एक साधना।
कवि ,साधक ही तो है,
जो करता है साधना,
अनवरत युगों युगों से,
हर बंधन से परे,
लिखता जाता है,
उस विराट परमतत्त्व की लेखनी,
जो मिलाती हैं उसे परमतत्त्व से,
भावों के एक अथाह सागर में,
उमड़ती,घुमड़ती भाव संवेदनाओं को जगा,
कहती जाती हैं,
बन जाओ खुद के रचयिता,
रच कर प्रथम स्वयं को,
रच दो ये सारी दुनिया,
जो भटक गयी है कही,
खुद के बिछाए मकड़जाल में,
लिख कर लेखनी तुम,
मिटा दो यह बेड़ियो के बंधन,
जाग कर स्वयं में,
तोड़ दो तामस के अंधकार को,
जो उपजाए थे तुमने ही,
कभी किसी वक्त,
मन की दुर्भावनाओं में,
तभी तो वह प्रेरणा,
बन जाती हैं कविता,
देवत्व के गुणों को कर धारण,
जो गुण हैं आत्मा का,
शायद अलंकार भी,
एक आत्मा का,
जो विशुद्ध है,
परे है देह के,
इस बंधन से,
जो बांध देता हैं,
असंख्य संकरीं दीवारों में,
गहराती जाती हैं जो,
छूटता जाता है यथार्थ,
छूटता जाता हैं यथार्थ,
तभी एक कविता लिखने से ज्यादा,
जीना होता है एक कविता को,
जगाने एक कवि,
मिटाना होता हैं, एक "मैं",
जो आधार हैं कराहती दीवारों का।