कविता
कविता
प्रकृति ने कहा
आओ वत्स
मेरी गोद में बैठो
मेरी इस अकूत संपदा का सेवन करो
ये फूल ये पत्तियां, ये घास, ये जंगल
ये फल ये लकड़ियाँ ये हवा ये पानी
ये नदियाँ ये नाले ये झीलें ये तालाब
ये समंदर ये पर्वत
ये सब तुम्हारे लिए ही तो हैं
मुझे लगा
वाह ये तो सोने की मुर्गी है
मैं ने छुरी ली और
और मुर्गी के पंख काटने शुरू कर दिए।
