दोहे
दोहे
आईं नूतन कोंपलें, नव पल्लव संकेत
कनक ऋचाएं हो गईं, वेद पृष्ठ हर खेत
हो कर कवि ऋतुराज की, की मैं ने तफ़तीश
सरसों की कुछ डालियाँ, मिलीं झुकाए शीश
शबनम बैठी पत्र पर, देख रही है राह
सूरज ले जाओ मुझे, गगन गमन की चाह
सावन आया घूमने, आई मस्त बहार
अमलतास ने टांग दी, स्वर्णिम वन्दनवार
झिरमिर झिरमिर झर झरे, झर झर रोये व्योम
सावन ससुरा सांवरा, बहका पीकर सोम
लो बादल ने खोल दी, फिर गठरी की गीठ
कीचड़ कीचड़ हो गई, है गठरी की पीठ
बिजली देती धमकियाँ, करे हवाएं छेड़
बादल के आंसू गिरे, लपक रहे हैं पेड़
बादल आये देखने, पर्वत जंगल बाग
दादुर,झींगुर गा रहे, मिलकर स्वागत राग
भीगे भीगे दिन हुए, गीली गीली रात
दीप जला कर चल पड़ी, जुगनू की बारात
बादल से बन प्रेम रस, बरस रही है प्रीत
रिमझिम बूँदें लिख रहीं, जीवन का संगीत
नदियाँ नाले भर गए, भरे समंदर ताल
शुष्क धरा की पीठ पर, उग आये हैं बाल।