दोहे
दोहे
तड़प रही हैं मछलियाँ, क्यों सूखे हैं तीर
दरिया से पर्वत कहे, कहाँ गया सब नीर
जंगल पर्वत रेत सब, देख रहे लाचार
तड़प तड़प कर मर रहा, दरिया का परिवार
नल के जलघर सँग कुआँ, बैठा हुआ अधीर
अम्मा पनघट से मुड़ी, ले आँखों में नीर
मोटे चावल में मिला, दिया जरा सा नीर
माँ के हाथों से बनी, बिना दूध की खीर
पानी सारा पी गये, रस्ते वाले घाट
और समंदर देखता, रहा नदी की बाट।