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अनन्त आलोक

Fantasy

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अनन्त आलोक

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होली पर दोहे

होली पर दोहे

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देखूँ तो कैसे लगें,

रंगे हुये रुखसार।

होली में देखा नहीं,

तुम को मेरे यार।


किस किस ने क्या क्या पिया,

इश्क शरारत भंग।

यूं कर फिर ता-शब चला,

दौरे जश्ने रंग।


गोरी तेरे शर्म से,

गाल हो गए लाल।

या होली का रंग है,

या यौवन की चाल।

आशिक लोगों ने बिछा,

दिया बहाना जाल।


होली होली हॉल कर छेड़ें गोरे गाल।

अब के होली यूं मनी, मचा खूब हुड़दंग।


छोरी टल्ली हो गई,

अम्मा बाबा दंग।


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