कविता
कविता
हसरतों की एक कली दिले गुलशन में मुस्काई
बैरी भंवरा बन गया यह जग, पल में वो मुरझाई ।
हसरत थी कि बन कर पंछी दूर गगन उड़ जाऊं
नील गगन की छांव में छोटा सा नीड़ बनाऊं।
हसरत थी कि सपनों से एक नई दुनिया बसाऊं
रूप का न हो वहां ठिकाना, सीरत की हो वाहवाही
हसरतें पूरी कहां हुई हैं, हसरत ने मात है खाई
जब तक सांस है, हसरत देखो उमड़ उमड़ कर आई
