कविता हमें रच रही है
कविता हमें रच रही है
1 min
437
दिल के जज़्बातों को कागज़ पर सजा रही है
मन के अल्फ़ाज़ों को कलम से बयां कर रही है
आँखों मे छिपी भावनाओं को स्याहि से निखार रही है
लबों से अनकही बातों को हर जुबां गुनगुना रही है
ज़िंदगी को फूल बनाकर खुशबू चारों ओर फैला रही है
ऐसा लगता है जैसे हम नहीं, कविता हमें रच रही है।