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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Fantasy Inspirational

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Fantasy Inspirational

जाने क्यूं चेहरे अब पहचाने नहीं

जाने क्यूं चेहरे अब पहचाने नहीं

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गीत : जाने क्यूं चेहरे अब पहचाने से नहीं लगते 


जाने क्यूं चेहरे अब पहचाने से नहीं लगते 

मेल मुलाकातों के रंगीन जमाने नहीं दिखते 

जाने क्यूं चेहरे अब पहचाने से नहीं लगते।। 


वो खुली किताबों की तरह दिल हुआ करते थे 

वो ठहाकों के दौर सरे महफ़िल हुआ करते थे 

यारों के दीदार ही कभी मंजिल हुआ करते थे 

शमा पे जलने वाले बेखौफ परवाने नहीं दिखते 

जाने क्यूं चेहरे अब पहचाने से नहीं लगते ।।


दिल की बातें दिल अनकहे ही समझते थे 

घरों में नहीं एक दूसरे के दिलों में वो बसते थे 

खुशी और गम सबके साथ साथ ही चलते थे 

लोग तो मिलते हैं मगर दीवाने से नहीं मिलते 

जाने क्यूं चेहरे अब पहचाने से नहीं लगते ।। 


मुखौटे पर मुखौटा है पहचानें भी तो कैसे 

मुंह पे मिठास दिल में खोट जानें भी तो कैसे 

मतलब की दोस्ती नहीं है यह मानें भी तो कैसे 

जिंदादिली के अब वो अफसाने नहीं दिखते 

जाने क्यूं चेहरे अब पहचाने से नहीं लगते ।। 


मित्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाइयां 



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