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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

Tragedy Fantasy

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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

Tragedy Fantasy

गँवारा न होता

गँवारा न होता

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अग़र चाहतों का सहारा न होता।

तुम्हारे बिना कुछ गॅंवारा न होता।


मिरी जिंदगी ग़मज़दा हो रही थी,

समां ख़ुशनुमा ये नज़ारा न होता।


कि मालूम होने लगा है मुझे भी,

सनम से हि मैं ज़ान हारा न होता।


तुझे देखते ही पसीना बहा है,

कहीं आज मुझको हरारा न होता।


ज़माना हमें इस क़दर ग़म दिया है,

बिना जख्म़ के अब गुज़ारा न होता।


सनम नाज़नीना हसीना तुम्हीं हो ,

दिले-जान का क्यों इशारा न होता।


ग़मों को हि कैसे गले से लगा लूॅं,

तुम्हारे बिना अब गरारा न होता।


मिरी आरज़ू पालकी को उठा लूॅं,

तुम्हारे लिए मैं कहारा न होता।


कि 'गुलशन' तुम्हीं से महकने लगा है,

फिज़ा ये ख़ुशी का बहारा न होता।


ग़रारा-नमकीन पानी से कुल्ला करना

कहारा-कहार जाति जो पालकी ढ़ोती है।


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