अंधेरा
अंधेरा
बचपन में
जिस अंधेरे से डर लगता था कभी
आज वही सुकून देता है!
रोता था कभी
जिस उजालों के लिए रात भर
आज वही झकझोर देता है!
खेला करता था
कभी जिस गलियों में
आज वही राह रोक लेता है!
मुस्कुराता था
कभी जिस चाक चौवटियों पे
आज वही उदासी का आलम पूछ लेता है!
वो सूरज वो चंदा वो तारा
देता था तन्हाई कभी साथ हमारा
आज वही पल पल है तन्हाई का अहसास करता!
दिन वही रात वही
गांव की गलियां चाक चौवटियाँ
सूरज चंदा और सितारा सब आज भी वही है!
आज फर्क बस इतना है
अब बस पहले वाली वो बात नहीं रही
वो जो था एक बचपन वाला अहसास
माँ की ममता के आंचल का साथ
अब बस अब वो नहीं रहा।