STORYMIRROR

Kunda Shamkuwar

Tragedy

3  

Kunda Shamkuwar

Tragedy

कवि और पाठक

कवि और पाठक

1 min
49

 कवि फिर परेशान था                    आज किसपर कविता लिखी जाए         जो विषय आसपास बिखरे हुए है     उनको पाठक तवज्जो नही देते हैं

 कवि ने गरीबी पर लिखना चाहा    पाठक फिर बिदक गए                    अब तो देश मे विकास आ गया है      तुम ये गरीबी की कविताएँ बंद करो

 कवि ने भुखमरी पर लिखना चाहा       पाठकों ने फिर शोर मचाया                 चावल और चना मिल तो रहा है         अब कितना खाते जाएँगे ये लोग  

 कवि ने इधर उधर देखा                चुपके से भ्र्ष्टाचार पर लिखना चाहा  पाठक ने सवाल दागना शुरू किया    तुम इन सहूलियत को बंद मत करो

 कवि को ताज़ा विषय नज़र आया   पुलिस के एनकाउंटर का             पाठकों ने फिर चेताया                 अपराध नियंत्रण का नया तरीका है

 कवि मीडिया की बाते लिखने लगा     सत्ता की चाटुकारी में लिप्त पत्रकार   पाठक फिर बरस पड़े                       चौथे स्तंभ की बहस मामूली नही है 

 कवि स्त्रियों पर होनेवाले अत्याचार पर   लिखना शुरू किया                       पाठक आगबबूला हो गए इस देश मे   स्त्रियों को पूजा जाता है

 कवि ने लिखना जारी रखा                 उसने भ्रूण हत्या पर लिखना चाहा     पाठकों ने फिर लताड़ा                      हर साल अष्टमी को कन्या पूजते हैं

 आजकल वाकई कवि परेशान है   पाठकों की हताशा देखकर               कभी हाथ मे मशाल थामने वाला कवि   इन हालातों में अँधेरों में भटक रहा है...


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy