कुछ तो है इनमे
कुछ तो है इनमे
बामन चंद्र दिक्षीत।
कुछ तो है इनमें!
तेरी डब डबी आँखे
देखती जब मेरी ओर
बिन चाह बिन मोह के
बस खामोश निहारती ऑंखे ।
कभी शिक़वा की शिकन से फैली
कभी शिकायत की बोली
कभी शर्मोहया ...
कभी बेशर्म बेहया
कसक जगाती दिल मे
इशक उगाती पल में
शोख़ पलकों से छिपती
छलाने जलाने की ज्वाला
अगन भरी हो जिनमे।
कुछ तो है इनमें!!
तेरी लब लबी होंठ
बिन बोले बहुत कुछ
बोल जाना, बोलते रहना!
कभी खामोश होते हुए भी
बयाँ कर जाना वो सब
जो कभी बोला भी ना हो!
कभी समझ पाता मैं
कभी ना समझते हुए भी
समझ जाता मैं।
समझना ना चाहते हुए भी
समझ जाता सब कुछ
समझने की सब्र ना रखते हुए भी
समझ जानेकी बहाना करता मैं।
बिन रोक टोक बिन तकरार
खामोश हो जाता मैं।
तेरी बातों को मान जाता मैं
कुछ तो है इनमे!!
तेरी मुस्कानों की काया
कभी हल्की सी फीकी सी
कभी निकलते निकलते रुकती
कभी रुकते रुकते बहती
अबिरल अनर्गल ठहाकेदार
कभी नीरव निश्चल निःस्वर
कभी दिल की तार को छूँ कर
झंकार परोसती प्यार का
कभी साँसों में समा जाती
थामे नसों की प्रबाह को
धड़कनों को बेकाबू कर जाती
कभी होंठ कभी बातें
कभी मुस्कान कभी आंखे
असर कर जाते दिल मे।
कुछ तो है इनमें।।

