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Sarika Jinturkar

Abstract

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Sarika Jinturkar

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कुछ ना कुछ छूटना..

कुछ ना कुछ छूटना..

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छूट गया वो बचपन 

वाले सभी यारो का साथ  

अब तो बस पास है साथ बिताये 

कुछ लम्हे और कुछ संजोए जज्बात 

छूट गई दादा की प्यारी सी डाट और दादी से सुनी हुई

 परियो की कहानी  

दूर अपनो से अंजान शहर मे बसा 

ली है हमने एक अलक दुनिया अपनी  


छूट गया अब पीछे हमसे सारा पर्व त्योहार

अब तो बस रह गई दिल मे यादे बेशुमार  

छूट गया नादान बचपन, बारीश मे कागज की कश्ती

अब आयी समझदारी नजदीक किनारा

लेकिन छूट गई मंजिलें सारी  


इसलिए 

कुछ ना कुछ छूटना तो लाजमी है जिंदगी.. 

सब कुछ हासिल नहीं होता जिंदगी में

यहा किसी का "काश" तो किसी का

 "अगर" छूट ही जाता है ..

 कुछ न कुछ छूटना तो लाजमी है

जिंदगी बनते बिगडते हालातों का 

हिसाब है जिंदगी 

हर एक रोज एक नया पन्ना 

जुड़ता है जिसमे,

वह ही एक किताब है जिंदगी...


जिंदगी एक हसीन पल है, जिसमे 

ना आज है ना कल है

 जिलो इसे अपने मुताबिक 

 ठान लिया तो जिंदगी का हर 

एक हसीन, खूबसूरत पल है

कुछ न कुछ छूटना तो लाजमी है।


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