सृष्टी
सृष्टी
रूप मनोहर वसुंधरा का
हर पल कुछ कहता है
ढूँढो तो मतलब जीवन
का सृष्टि में मिलता है
कीचड़ में रहकर भी खिलना, कमल हमें कहता है
वृक्ष बाटता घनी छाँव
जब धूप घनी सहता है
काँटों में बढ़कर भी
सुंदर फूल सदा खिलता है
तोड़ने वाले हाथों को भी
खुशबू देकर जाता है
पतझड़ के मौसम में
सूखे पत्ते जो गिरते हैं
वियोग को अपनाना होगा,
हमसे यह कहते हैं
ढलता सूरज जाते-जाते कुछ पल तो रुकता है
आना- जाना शाश्वत है
बस यही बयां करता है
बहती हुई नदी भी समुंदर
को जा मिलती है
अपना मीठा पानी देकर खुद खारे पानी में समा जाती है
खुद अपनी राह बनाना सीख लो
अपने दम पर कुछ करना
सीख लो सुख हो या दुख बस चलना सीख लो यह सृष्टी हमें बताती है...
