कर्तव्य की पुकार
कर्तव्य की पुकार
इंसान तू क्या है कर खुद की पहचान
कर्मठ बन इसमें ही है तेरी सच्ची शान
पुरषार्थ की मूर्ति बन लगा दे अपने कर्म में जान
देगा जग तेरी मिसाल इसमें होगा तेरा मान
कैसी भी परिस्थिति हो तू रखना अपने कर्म ध्यान
जो भी करेगा होगा असरदार अब तू है एक बुद्धिमान
तू सुनकर अपने कर्तव्य की पुकार
करता प्रभु का आदर - मान
फौजी रूप में तू रखता भारत - माता के लिए
अपनी हथेली पर अपने प्राण
गर्मी - सर्दी - बर्फ की चादर इन सबको तू भेदना जाने
ऊँची चोटी हो या दुर्गम पथ इन सबको तू क्या माने
ये देश हर उत्सव खुशियों से तेरे कारण लगा मनाने
हम सो जाते निश्चिन्त हो क्योंकि
फौजी रूप तू लगा है वचन निभाने
कर्तव्य की पुकार में तू तो दुश्मन की
तोप - गोलों को कुछ भी जाने
लगा हुआ हम सब ख़ातिर अपना लहू बहाने
अध्यापक बन तू तो लगा है अपना धर्म निभाने
खुद दिये की तरह जल लगा है प्रकाश फ़ैलाने
माँ - बाप से ऊपर तेरा पद ये दुनिया माने
तेरी महिमा गुरु रूप में ये जग है जाने
तू कर्मपथ का पक्का है तेरा हर वचन सच्चा है
तेरी जिह्वा पर सारस्वती वास ये कहते है लोग सयाने
कर्तव्य की पुकार में तू लगता है पाठ - पढ़ाने
ये कविता करता हूँ उनको अर्पण
जो लगे रहते सच्चे मन से अपना कर्म निभाने
सच्चे मेहनती की कदर तो रब भी बड़े अदब से माने
जो अपने फर्ज में मरना - मिटना जाने
प्रभु लुटाता ऐसे लोगों पर अपने प्यार ख़जाने
वो सब तो पाते है रहम - दृष्टि जो ईश्वर माने
गीता में श्री कृष्ण कह गए
कर्म कर फल की इच्छा मत कर
जो इस उपदेश को माने वो ना बनाते
कर्तव्य की पुकार को पूरा करने में कोई बहाने।