कर्म
कर्म
हर समय हर मनुष्य करता ही रहता है कर्म।
सोचना, कहना, करना या
करवाना सब कुछ ही है कर्म।
वैसे शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता कर्म।
यूं तो फल की इच्छा रखे बगैर करना चाहिए कर्म।
पर न्यूटन के सिद्धांत की तरह होते हैं कर्म।
आपके पास लौटकर ज़रूर आते हैं आपके कर्म।
‘जैसा बोओगे वैसा काटोगे’ यही कहता है धर्म।
वैसे इस दुनिया में मिला है मनुष्य का जन्म।
तो धर्म की राह पर चलते हुए ही करना।
सदा अपने कर्म।
‘इंसानियत’ ही है मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म।
और मानव की सेवा करना है सबसे बड़ा कर्म।
84 लाख योनियों में भटकने के बाद।
एक ही बार मिलता है मनुष्य का जन्म।
सभी होते हैं समान यहाँ और
लाल ही होता है सभी के रक्त का रंग।
इसीलिए सदा करना बिना किए कोई शर्म।
अपनी आखिरी साँस तक इंसानियत का कर्म।
इंसानियत का कर्म।