कोई लम्हा टूटा होगा , वक्त की टहनी कांप रही है
कोई लम्हा टूटा होगा , वक्त की टहनी कांप रही है
कोई लम्हा टूटा होगा , वक्त की टहनी कांप रही है।
तूफ़ान का सामना हुआ होगा हवा भी हांफ रही है।
वो ना बदला था, ना बदला है और ना बदलेगा कभी,
हरेक काम में आदमी की फितरत सदा सांप रही है।
बर्फ जम गई है सभी रिश्तों पर, नाते ठर से गए हैं,
घर! घर न रहे मकां हो गए बस मां ही छांव रही है।
कोई जी रहा है जिंदगी , कोई काट रहा है इसको,
सांसों का अपना शोर है संकट में भी सांस रही है।
पहले गांठें बांधने में गुजर गई उम्र, टूट कर जुड़ते नहीं,
धागों जैसे नाज़ुक रिश्तों में ,जब कभी गांठ रही है।
गिरे हैं दिल सड़क पर लहूलुहान और पांव में चुभते हैं,
और शख़्सियत सबकी छिल जाती है जो कांच रही है।
उसूलों पर भारी अहं की आग प्रचंड है हर तरफ,
अब रिश्तों में पहले जैसा इत्तफाक ना आंच रही है।