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Sudhir Kumar

Abstract Tragedy Fantasy

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Sudhir Kumar

Abstract Tragedy Fantasy

कुल मिलाकर आदमी मजदूर है

कुल मिलाकर आदमी मजदूर है

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कुल मिलाकर आदमी मजदूर है।

कुछ न कुछ ढोने को वो मजबूर है।


कोई दो वक्त की भूख से लाचार है,

कोई हर घड़ी रहता बड़ा मगरुर है।


ठोकरों  लाचारियों  के  वावजूद,

फिर भी दिल तो ताज़गी भरपूर है।


जान भी  दे दे अगर वो इश्क में,

लेकिन परखना हुस्न का दस्तूर है।


तू नसीहत इस वक्त कर  ना  कर,

फिर फ़ैसला तेरा हमें मंजूर है।


रोजमर्रा जिंदगी तंदूर है।

मरने को बस आदमी मजबूर है।


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