आज हर आदमी ,बुझा बुझा क्यों है।
आज हर आदमी ,बुझा बुझा क्यों है।
आज हर आदमी , बुझा बुझा क्यों है।
हर कोई किसी से यहां खफा क्यों है।
चेहरे हैं जहां में , जुदा - जुदा फिर भी,
हरेक नजर में कोई दूसरा बुरा क्यों है।
हर दिल में बसता है उम्मीदों का शहर,
दिल आज आखिर , भरा भरा क्यों है।
यूं तो हर कोई उससे वाकिफ है मगर,
ना जाने शख्स इतना डरा डरा क्यों है।
सोचा था कि रगों में लहू बहता होगा,
हर जिस्म में दौड़ता फिर नशा क्यों है।